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छुट्टि भी आती हँ, त्योहार भी आते हँ ,
पर उसको कोइ आराम नहि आता है,
क्यॉ मॉ के हिस्से मे सिर्फ काम ही आता है,
क्यौ मॉ का कोइ रविवार या त्योहार नही आता है।
सुभा हो गयी, शाम हो गयी,
दुनिया सरपट दौड: रही,
सब तेरा ही तो है ये मॉ,
यह सोच कर धन्य हो रही।
चुक हो गई तो हंस देति है,
सब का गुस्सा दिल मँ पी लेति है।
सब काम कर्ती है, सबकी सुनती है,
तब भी उसका कोइ रविवार नहीं होता है।
एक अकेली जान यहॉ पर,
सारे घर को सम्भाल्ति है,
ना कोई कोई पैसा, ना वेतन,
बस प्रेम प्यार को जीती और मरती है ।
सब व्यापार, सब नौकरियो से ये ऊपर है,
मॉ के प्यार के सामने सोना भी कीचढ: है,
उठ:ती सबसे पहले है, सोती सबसे बाद मै,
रविवार के आने जाने का उसे कोइ पता नही होता।
सबके लिये दुख मॅ भी हॅसती है,
अपनी इच्चाऑ को भूल कर भी,
सबका ध्यान रखती है,
मॉ के रिश्ते मे कोइ रविवार नही आता है ।
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