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मेधा पटकर का नया अवतार : उमा भारती

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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से चुनाव जीतने के बाद से ही गंगा सफाई अभियान एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है। इसी कारण इस कार्य को प्रधान मंत्री जी ने इस मंत्रालय को सुश्री उमा भारती जी को दिया है।

उमा भारती जी अत्यंत धार्मिक, मृदुभाषी, होशियार, कर्मठ एवम ईमानदार महिला है। परंतु उनको तकनीकी जानकारी का एकदम अभाव है। इस कारण उंनके मंत्रालय मे एसे लोगों का जमावड़ा हो गया है जो वामपंथी विचारधारा से प्रभावित लगते है तथा उनकी कार्यशैली गैर सरकारी संगठनौ [एन.जी.ओ.] की कार्यशैली के समान प्रतीत होती है।

इस कारण से उमा भारती जी का मंत्रालाय गंगा सफाई कम कर रहा है , बांध विरोधी कार्य अधिक कर रहा है। उनका मंत्रालय बांध विरोधी मंत्रालय बन कर रहा गया है। जब से गंगा की सफाई का कार्य प्रारम्भ हुआ है, तभी से सिर्फ एक ही बात पर ध्यान एवम जोर दिया जा रहा है कि गंगा नदी पर कोई भी बांध का निर्माण ना किया जाये। इतना ही नही यह लाबी इस बात पर ज्यादा जोर दे रही है की, बाँधों को तोड़ कर नष्ट कर दिया जाये।

अब यह गंगा सफाई अभियन, बांध विरोधी, उद्योग विरोधी, रोज़गार विरोधी, विकास विरोधी, कृषि विरोधी एवं जल विरोधी बनता जा रहा है, जैसे कि इस मंत्रालय कि कमान, बांध विरोधी, उद्योग विरोधी, रोज़गार विरोधी, विकास विरोधी, क्रषि विरोधी, जल विरोधी मेधा पट्कर जी के हाथ मे हो।

यह बांध विरोधी लौबी अब एक नया आंदोलन चला रही है, तथा उसका नाम बडा ही लुभावना दिया है, “गंगा की अविरल धारा।” इस लुभावने नाम से राष्ट्रवादी एवम हिंदुवादी सरकार मे घुसपैठ की जा सके। परंतु यह तत्व वाम पंथी विचार धारा से प्रभावित ज्यादा है। इस कारण यह कार्य सिर्फ एवम सिर्फ बांध विरोधी कार्य तक ही सिमट कर रहा गया है। इस कारण गंगा पर बांध बनाना एकदम असम्भव सा कार्य बन कर रह गया है। इतना ही नही यह लॉबी बाधौ को गंगा की सफाई मे सबसे बडी बाधा बता कर अफवाह भी फैला कर राष्ट्र को गुमराह भी कर रही है। इस कारण केंद्रिय जल संसाधन मंत्रलाय ने गंगा पर नये बांध निर्माण पर एकदम प्रतिबंध लगाने का बडा जन विरोधी, बांध विरोधी, उद्योग विरोधी , रोज़गार विरोधी, विकास विरोधी, कृषि विरोधी एवं जल विरोधी बडा फैसला ले लिया है।

बाधौ के निर्माण से गंगा मे स्वच्छ पानी की सप्लाई पुरे साल सुनिश्चित करने के साथ ही साथ, बाँधों का रोज़गार, विकास, आदि मे भी महत्वपुर्ण योगदान होता है। बाधो से सिचाई एवम पीने के पानी की समस्या को भी बडे आराम से हल किया जा सकता है। इससे सबसे बडा लाभ यह है कि बाँधों से सबसे सस्ती हाइड्रो पावर बना कर देश मे बिजली की कमी से भी बडे आराम से छुटकारा पाया जा सकता है। होना यह चाहिये कि प्रत्येक नगर, कस्बे से पहले बाँधों का निर्माण कार्य बडे स्तर पर होना चाहिये तथा उस ईक्क्ठे पानी को नदी मे छोड कर, पूरे साल नदी के बहाव को अविरल, साफ एवम सुनिष्चित किया जा सकता है।

यह कैसी विड्म्बना है कि गंगा के किनारे बसे नगर जैसे कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, फरुखाबाद, कन्नौज, मिर्जापुर, गाज़िपुर, भागलपुर, पटना, कोलकाता आदि नगर पीने के पानी के लिये तरसते हैं क्यों कि वहां गंगा पर बांध का निर्माण ही नहीं किये गये हैं।

यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ नदी जैसे हिन्डन, काली नदी, क्वारी नदी, केन, बेतवा, चम्बल, आदि नदियाँ धीरे – धीरे अस्तित्व ही खोती जा रही है क्यों कि उन नदियों पर बांध बनाकर उनमें जल प्रवाह को सुनिश्चत ही नहीं किया गया तथा यह नदियाँ अब बरसाती नाले के समान रह गयीं हैं तथा नदियों की जमीन को सेकुलर एवम सामाजिक न्याय से जुडे नेताओं ने अपने वोट बैंक में बांट दिया है।

बांध के ना होने के कारण आज स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि नदियों के किनारे बसे नगर आज बूंद बूंद पानी को तरस गये हैं। इन सभी समस्याओं को सिर्फ बांध ही दूर कर सकते हैं। इसके साथ ही साथ कुछ राज्य जैसे उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर के सभी राज्य, जम्मू – कश्मीर आदि राज्यों में बांध निर्माण विकास की आंधी ला सकते हैं।

आज देश में पानी की विकट समस्या है परंतु देश में प्रतिवर्ष बाढ और सूखा भी जबर्दस्त तबाही मचाते है। इन सभी समस्याओं से सिर्फ नदियौ पर बांध ही छुट्कारा दिला सकते है। इसके साथ ही साथ जब बांधौ का पानी जब नदियौ मे छोडा जायगा तो गंगा नदी ही नही अपितु सभी नदियाँ प्रदूषण मुक्त होकर स्वच्छ पानी की भरपुर सप्लाई करॅगी।

जब अंग्रेज़ शासन काल मे गंगा नदी पर भीमगोड़ा बेराज बनाया गया तब राष्ट्रवादी महामना मदन मोहन मालवीय जी के नेतृत्व मे अंग्रेज़ों के साथ 1916 मे एक समझौता किया गया जिसके अनुसार हरिद्वार मे गंगा नदी मे 1000 क्यूसेक पानी हमेशा छोड़ा जाना था जिससे गंगा की अविरल धारा बनी रहे। परंतु केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय यह 1000 क्यूसेक पानी की उपलब्ध्ता की बात पूरी भागीरथी नदी के लिए कर रहा है। जिससे भागीरथी नदी पर एक भी बांध नहीं बनाया जा सकता। शुष्क ऋतु मे भागीरथी नदी मे इतना पानी कई स्थान पर उपलब्ध ही नहीं होता है।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय एवं वन एवं पर्यावरण मंत्रालय आजकल दो एक नयी तकनीकी शब्दों के जाल बुन रहा है जैसे की नदी की अनुदैर्ध्य सन्योजक्ता (Longitudinal Connectivity) एवं पर्यावरणीय बहाव (Environment Flow)। अनुदैर्ध्य सन्योजक्ता जैसे शब्दों का निर्माण बांध न बनाए जा सके इसलिए किया गया है। जब भी कोई बांध बनाया जाएगा तो नदी की अनुदैर्ध्य सन्योजक्ता तो बाधित होगी ही। पर्यावरणीय बहाव पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जो भी नियम निर्धारित किए हैं उन्हें पूरा किया जा सकता है परंतु अनुदैर्ध्य सन्योजक्ता की बात करना बेमानी होगी।

विडम्बना यह है कि आज जल संसाधन मंत्रालय मे मेधा पटकर की आत्मा घुस कर बांधौ का विनाष कराने का षड्यंत्र रच रही है जिस कारण मंत्रालय की आत्मा बांध विरोधी, जन विरोधी, उद्योग विरोधी, रोज़गार विरोधी, विकास विरोधी, कृषि विरोधी, जल विरोधी हो गयी है, तथा सभी मेधा पट्कर की भाषा बोल रहे है।
इतना ही नही बांध विरोधी होने का ठप्पा लगने के क।रण भरतीय जनता पार्टी को उत्तराखंड, सहित अनेक पहाडी राज्यौ मे मतदातायौ का विरोध एवम गुस्सा झेलना पडेगा क्योंकि आज बांधों पर अनेक राज्यों की अर्थव्यवस्था आधारित हो गयी हैं।

गंगा पर प्रदुषण रोकने का सबसे सक्षम माध्यम सिर्फ बांध ही हो सकते हैं। वर्षा के पानी को बांधो मे इक्ठ्ठा कर के पूरे वर्ष गंगा में अविरल धारा सुनिश्चित की जा सकती है।

गंगा की भुमि पर अवैध कालोनिया गंगा में प्रदुषण के लिये उत्तरदायी हैं उन्हें तुरंत वहां से ध्वस्त किया जाये तथा मुक्त की गयी भुमि में वृक्ष लगाये जायें जिससे वातावरण शुध्द हो। बांध देश की, समाज की, विकास की, रोजगार की, सिंचाई की एवं जल की जीवन रेखा है।

गंगा सफाई में इन मेधा पटकर के भूतों को दूर रखा जाये तथा नेशनल हाइड्रो पावर कारपोरेशन जैसी विषशज्ञ संस्थानों को गंगा सफाई से जोडा जाये जिससे देश तथा समाज के विकास में मां गंगा के आशीर्वाद की अविरल धारा चलती रहे।

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