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नई दुनिया….

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घोंसले कच्चे थे,
लेकिन रिश्ते पक्के थे…
खटिया पर बेठते थे,
और सब साथ सोते थे….
आ गए डबल बेड—सोफ़े,
पर दिल मे गड्डे बन गए…
पहले खुले मे सोते थे,
रोज नये रिश्ते बनते थे…
घर के पेड़ के नीचे,
सभी दुख-सुख बाटते थे…
कोई ताला भी नहीं होता था,
पर कोई चोर भी नहीं होता था…
कोए की काव पर ही,
मेहमान दिख जाता था…
एक बैल-गाड़ी थी,
पर सफर खुशी से कट्ता था…
रिश्ते ही रिश्ते थे,
कोई रूठता-टूटता नहीं था…
धन-दौलत कम थी,
पर कोई गम भी नहीं था….
पहले पतंग और कबूतर उड़ाते थे,
अब विडियो मे नकली जहाज उड़ाते हे…
घोंसले कच्चे थे,
लेकिन रिश्ते पक्के थे…
अब सब कुछ है,
पर दिल-दुनिया खाली हैं…
लगता है नंगे पैदा हुए थे,
और आज भी नंगे हैं।

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