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गुलिस्ता

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कोहरा चाहे कितना भी हो,
उजाले को एक किरण ही काफी है I
अँधेरा चाहे कितना भी काला हो,
बस एक चमक ही काफी है I
फ़िज़ा में चाहे कितनी भी बास हो,
महकाने को एक फूल ही काफी है I
चाहे कितने भी गद्दार हो,
एक सूरमा ही तिरंगे को,
बुलंद रखने को काफी है I
हर जगह, हर वक्त,
एक गरज ही वतन का नामे,
रोशन करने को काफी है I
एक ही चाँद रात के अंधियारे में,
नूर फैलाने को काफी है I
एक ही अफ़साना सूनी मेहफिल में,
हुंकार बजाने को काफी है I
इस तड़पते -सिसकते गुलिस्ता को,
आबाद करने को एक ही कमल काफी है I

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