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धार्मिक पाखंड

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आज सम्पूर्ण राष्ट्र त्यौहारों के रंग में पूरी तरह से डूबा हुआ है। चारों ओर त्यौहारों का गर्म एवं रंगीला माहौल बना हुआ है परन्तु आज हमारे राष्ट्र में त्यौहारों की वास्तविक भावना जैसे:- धर्म, प्यार, सद्भावना, तप, प्रेम, अहिंसा आदि सभी पीछे छूटते जा रहे हैं परन्तु धन का नशा एवं अन्य अभिनय ही सामने दिखाई देते हैं।

आज त्यौहारों को मनाने में चारों तरफकान फोड़ लाउड स्पीकर, बैण्ड, आतिशबाजी, बिजली आदि का बहुतायात मात्रा में उपयोग होने लगा है। इससे एक ओर जहां ध्वनि एवं वातावरण प्रदूषित होता है वहीं दूसरी ओर आम जनता को अत्यधिक असुविधा होती है एवं परेशानी का सामना करना पड़ता है। जहां हिन्दू लोग रामलीला, दीवाली आदि पर इस तरह का प्रदूषण फैलाते हैं, वही मुस्लिम धर्म के लोग नमाज में तथा रमजान आदि के दिनों में लाउड स्पीकर पर नमाज एवं सरगी के प्रचार एवं प्रसार से ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं तथा आम नागरिक की शांति में व्यवधान उत्पन्न करते हैं।

आज धर्म के नाम हिन्दुओं में भगवती जागरण एवं भण्डारे में दावत एवं धन का अभद्र दिखावा होता है वहीं मुस्लिम लोग रोजा इफ्तार पार्टियां आदि के आयोजनों में इस तरह का पाखण्ड करते हैं। इन सभी प्रकार के आयोजनों में धन की बर्बादी, समय की बर्बादी, खाद्यान्नों की बर्बादी के साथ-साथ समाज में अनुचित प्रतिस्पर्धा, तनाव तथा अन्य कुरीतियों को जन्म देते हैं।

हिन्दुओं में अनेक पर्वो पर देवी-देवतओं की मूर्तियां स्थापित करना एक धर्म का अटूट हिस्सा बन गया है परन्तु अब इस दौड़ मेंं व्यवसाय एवं नटखटपन प्रवेश कर रहा है। जहां एक ओर हर पण्डाल मूर्ति के आकार का बड़े से बड़ा करने का प्रयत्न करता है वहीं दूसरी ओर चीन में तैयार रंग और मिट्टी से मूर्तियां बनवाने में उपयोग होने लगा है। इसमें अनावश्यक धन की बर्बादी होती है साथ ही साथ विसर्जन में नदी, समुद्र के पानी भी पूरी तरह प्रदूषित होता है। इसके साथ ही साथ विसर्जन के समय अनेक श्रृ़द्धालु भक्तजन पानी में डूब जाते हैं जिससे गंभीर दुर्घटनाएं प्राय: घटती है तथा इसके साथ ही साथ सड़कों पर ट्रैफिक जाम की गंभीर समस्या भी खड़ी हो जाती है। कभी-कभी इससे सामाजिक व मानसिक तनाव भी उत्पन्न होता है।

पहले प्रत्येक नगर, कस्बे में विसर्जन कुण्ड हुआ करते थे जैसे:-गुड़गांव में सूरजकुण्ड, गाजियाबाद मेंं पक्का तालाब, मेरठ में सूरजकुण्ड, अलीगढ़ में अचलता तालाब, कानपुर में परशुराम तालाब आदि किन्तु भूमाफियाओं ने समस्त कुण्डों पर अपना प्रभाव जमाते हुए पूरी तरह से कब्जा कर लिया अथवा उनमें पानी ही नहीं है। इस कारण अब मूर्ति विसर्जन नदियों एवं समुद्रों में होने लगा है जिससे जल प्रदूषण के साथ डूबने की भी घटनायें घटित होने लगी हैं।

इन धार्मिक पाण्डों में मुस्लिम भी हिन्दुओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। मुस्लिम समुदायों की अधिकांश स्थानों पर शुक्रवार (जुम्मे) की नमाज सड़कों पर ही होती है जिससे शुक्रवार को सड़कों पर भारी जाम की समस्या उत्पन्न होना एक आम बात हो गई है। इसी तरह से उनके ताजियों के जुलुस से भी सड़कों पर जाम लगना आम बात हो गई है। लगभग ऐसी ही ट्रैफिक जाम की समस्या प्रत्येक बृहस्पतिवार को हर दरगाह व मजार के बाहर भी देखी जा सकती हैं। मजारों में मंहगी, रंगीन चादरों को चढ़ाना एक रूढि़ रीति-रिवाज बन गई है। राजनैतिक हस्तियां, फिल्म कलाकार आदि इस अभिनय में कहीं अधिक बढ़चढ़कर भाग लेते हैं तथा मीडिया भी इस नाटक को बढ़ा-चढ़ाकर प्रसारित करता है।

ईद के अवसर पर भी बड़ी संख्या में पशुओं की बलि दी जाती है। इतना ही नहीं दुधारू पशु एवं खेती के उपयोग में आने वाले पशुओं की भी बलि दे दी जाती है। इस धार्मिक प्रथा के कारण देश मेें दुधारू पशुओं की बहुत कमी होती जा रही है तथा दूध की भी जबर्दस्त कमी होती जा रही है। इस प्रकार खेती में काम आने वाले पशुओं की भी भारी कमी होती जा रही है। पशु बलि के कारण ईद के उपरान्त देशभर में वायु मण्डल प्रदूषित होता है। बॉयोमेडिकल कचरे को नालियों में बहाने के कारण मिट्टी एवं पानी प्रदूषित होते हैं। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता है।

भारतवर्ष एक लोकतांत्रिक देश है यहां मतदाता को धर्म के नाम पर लुभाने की सभी में दौड़ लगी रहती है। सभी राजनैतिक दल इन धार्मिक पाण्डों मेंं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। उदाहरण के लिए रोजा इफ्तार पार्टियों में सभी तथाकथित सैकुलर नेता सिर पर गोल टोपी धारण कर इस पाखण्ड में बड़े ही शान से शामिल होते हैं। इसी तरह देवी जागरण, रामलीला, होली आदि में नेता लोग बड़े ही शान से शामिल होते हैं इससे सरकारी धन का भारी दुरूपयोग होता है तथा इन आयोजनों की सुरक्षा एवं व्यवस्था पर भारी सरकारी संसाधन व्यय होता है।

इन सभी वर्णनों से पूरी तरह स्पष्ट है कि हमारे देश में धर्म के नाम पर पाखण्ड बढ़ता ही जा रहा है तथा यह धार्मिक पाखण्ड एक राष्ट्रीय कुरीतियों में परिवर्तित हो गया है। इस पाखण्ड के कारण अनेक स्थानों पर कानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति एवं समस्या पैदा हो जाती है जिससे जान माल की भारी क्षति होती है। दुर्भाग्य से इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दे पा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं इन पाखण्डों पर भी न्याय पालिका भी कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दे रही है।

न्यायालयों ने सभी मन्दिर-मस्जिदों से लाउड स्पीकर लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया है परन्तु प्रशासन इसे लागू करने में या तो विफल रहा है या उसके निर्णय, निर्णायक कम, विवाद पूर्ण ज्यादा रहे हैं। इसी तरह हिमाचल प्रदेश् उच्च न्यायालय, गोवाहाटी उच्च न्यायालय, झारखंड उच्च न्यायालय ने मन्दिरों एवं हिन्दुओं के पर्वो पर पशु बलि पर पाबन्दी लगा दी है परन्तु मुस्लिम वर्ग द्वारा दी जाने वाली पशु बलियों पर कोई आदेश नहीं दिया है। इतना ही नहीं कुछ पशु प्रेमी संगठनों ने भोपाल में अल्पसंख्यकों को पशु बलि के खिलाफ जागृत करने का प्रयत्न किया था तो उनकी बुरी तरह पिटाई की गई। इतना ही नहीं महिलाओं को भी बेरहमी से पीटा गया।

अब धर्म के नाम पर एक नये पाखण्ड ने देश को जकड़ लिया है। अब इसमें भूमाफिया भी पूरी तरह सम्मिलत हैं। पहले भूमाफिया सरकारी भूमि पर अपना अवैध कब्जा करते हैं फिर उसमें भव्य मन्दिर अथवा मस्जिद अथवा गुरूद्वारा अथवा मजार या कब्रिस्तान बनाकर उस पर अवैध निर्माण कराकर भूमि पर कब्जा कर लेते हैं। यह धन्धा बहुत अधिक अच्छी तरह से फल-फूल रहा है तथा चारों ओर अवैध मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, मजारों आदि की बाढ़-सी आ गई है। ये भूमाफिया प्रशासन एवं सैकुलर नेताओं से मिलकर दंगा फिसाद भी करवा देते हैं जिस जिससे जान माल की भारी क्षति होती है।

अन्त में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह धार्मिक पाखण्ड आज खतरनाक रूप से दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है तथा सम्पूर्ण राष्ट्र के सामने एक जटिल समस्या बन चुकी है। इस धार्मिक पाखण्ड ने हमारे राष्ट्र एवं समाज की प्रगति पर भी एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। हमारे देश का सैकुलर लोकतंत्र भी सारे के सारे पाखण्ड को बढ़ाने के लिए दोषी है और उसे भी अपने ऊपर अंकुश लगाना ही होगा।

डा. योगेश शर्मा

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