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डिग्री का बाजार

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एक समय था जब प्रसिद्ध लेखक अपना नाम छुपाकर रखते थे था भूत लेखक अथवा छद्म नाम से लिखा करते थे I परन्तु अब भारत में पीएचडी थीसिस, प्रोजेक्ट्स, शोध लेख आदि सभी छद्मं लेखकों अथवा पैसा के बल पर लिखवाए जा रहे है I यहां तक कि पुस्तके भी पैसे के बल पर छद्मं लेखकों के द्वारा लिखवाई जा रही है I छात्र इस तरहे कि आदत स्कूल में ही सीख़ कर आ रहे है जहाँ वे मॉडल, चार्ट, प्रैक्टिकल कार्य, होम वर्क आदि सभी पैसे के द्वारा बाजार में करवाते है I

यह बिज़नेस इतना आकर्षित है कि अब इसमें ऐन. जी. ओ ., रिटायर्ड प्रोफेसर, नौकरशाह आदि भी आ गए है I पहले वे सेमिनार- कांफ्रेंस- वर्कशॉप, लेक्चर्स, व्याख्यान आदि का आयोजन किसी चर्चित विषय पर करवाते है तथा उसके लिए सरकारी विभागों से तथा अपनों सम्बन्धो के बल पर ग्रांट एवं चंदा आदि इक्क्ठा कर लेते है I फिर उन्ही सब बने बनयाये, तैयार सामग्री से कोई पुस्तक अथवा जर्नल छपवाकर अपने नाम से छपवाकर अपना नाम आगे बढ़ाते है I इससे इन बेईमान लेखकों को अपने नाम से पॉइंट प्राप्त हो जाते है I

यू. जी . सी. ( विश्व विद्यालय अनुदान आयोग ) द्वारा पॉइंट सिस्टम ( ए.पी.आई ) के लागू होने के बाद से इस प्रकार के भ्रष्ट लेखन एवं शोध में बहुत तेजी आई है I इस तरह लाखों छात्र उच्च ग्रेड, अच्छे अंक, पॉइंट्स डिग्रीज, अवार्ड्स, नौकरी और प्रमोशन पा रहे है I इस तरह के फर्जी प्रोजेक्ट्स, डिग्री, शोध लेख आदि कुछ हजार अथवा लाख रूपये खर्च करIते है परन्तु पूरी की पूरी जिंदगी भरी लाभ देते है तथा और भी अनेक लाभ देते है I इस तरहे के ज्ञान बिज़नेस में अनेक नामी नाम तथा नामी संस्थाए सेवा में लगी हुई है I फोटो कॉपी के खोखे से लेकर प्रकाशन हाउस तक, इन. जी. ओ. से लेकर प्रोफेसर तक सभी इस ट्रेड में मेहनत से लगे हुए है i वे किसी दूसरे का लेख अथवा निबंध नक़ल करते है तथा किसी दूसरे को बेच देते है i इतना ही नहीं पी. एच. डी., एम. बी. ए. तक इस धंधे से जुड़े हुए है तथा भरी एवं आसान पैसा तेजी से बना रहे है i यहा शोध सिद्धांत बहुत ही सीधा और सरल है, अर्थात – कट – पेस्ट – श्रेष्ट्र एवं सरलतम शोध सिद्धांत !

यह भूत लेखन एवं शोध पद्वति आज खूब फल फूल रही है और यह अब भारतीय शिखा जगत की अंतरंग हिस्सा बन गई है ! यह भारतीय शिखा के पतन की अत्यंत शर्मनाक सच्चाई बन गई है! पहले से ही सरकार की ऐसी अनेक योजनाए है जिनके कारण भारतीय शिक्षा पतन की ओर तेजी से जा रही है, जैसे शिक्षा का अधिकार का कानून, सर्व शिखा अभियान, मिड डे मील, ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड, एपीआई, आदि आदि! यहां तक कि शिक्षा में कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों को ग्रेड देने वाली उच्चचतम संस्था , नेशनल असेसमेंट एंड एक्रीडएिशन कौंसिल ने भी पाया कि उसके कार्यालय में अनेक ऐसी रिपोर्ट जमा कि गई है जो कही से नक़ल क़ी गई है !

एकेडेमिक नैतिकता का कोई भी अर्थ हो परन्तु अब शिक्षा में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है! इस तरह से डिग्री प्राप्त करने के बाद, वह छात्र नौकरी में निुयक्त होकर हर प्रकार के लाभ पाने का हक़दार होगा तथा वह छात्रों को पढ़ायेगा जिसके लिए वह योग्य ही नहीं है ! कट एवं पेस्ट रिसर्च सिस्टम में सबसे पहले नैतिक मूल्यों को गटर में डाला जाता है! ऐसे वातावरण में परीक्षक एवं विशेषज्ञ थीसिस अथवा रेसेरच पेपर को पढने का कष्ट ही नहीं उठाते है और कुछ इतने दयालू हो जाते है कि कहते है कि गरीब छात्र का भविष्य बनने दो! वे इस बात को जरा भी नहीं सोचते है कि वे समाज एवं राष्ट्र का भविष्य ही बर्बाद ही नहीं कर रहे अपितु सर्वनाश ही कर रहे है!

अगर परीक्षक अथवा विशेषज्ञ ईमानदार है तो वह आराम से इस फर्जीवाड़े को आराम से पकड़ लेगा! छात्र और छद्म लेखक के बीच कि असमानता को आराम से पकड़ सकते है परन्तु कोई भी आवश्यक मेहनत नहीं करना चाहता है! इसमे सबसे बड़ा अंतर थीसिस में लिखी गई भाषा और छात्र द्वारा मौखिक परीक्षा अथवा साक्षातार में बोली गई भाषा के अंतर से इस फर्जी बाड़े को पकड़ा जा सकता है!

अब स्थिति इतनी ज्यादा ख़राब हो गई है कि 80 से 90 प्रतिशत शोध, प्रोजेक्ट्स, रिसर्च लेख आदि ऐसी कट – पेस्ट सिस्टम से तैयार होने लगे है! यहां तक कि उच्च पदों पर बैठे व्यक्ति भी इस सिस्टम के द्वारा अपने एकेडेमिक उपलब्धयाँ बढ़ाते है! जब आय, नौकरी, प्रमोशन आदि एक्स पद्यति से आसानी से प्राप्त हो जाते है तो नैतिकता अथवा कानून को सब भूल जाते है! वास्तविकता का तब पता चलता है जब उनका कार्य सामने आता है परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और इस सिस्टम में ईमानदार तथा मेहनती लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है अथवा पीछे रहते चले जाते है!

अब इस देश में योग्यता एवं मेहनत को कोई नहीं पूछता है नाही इसको कोई पुरस्कृत करता है! इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह रिसर्च, प्रोजेक्ट, पब्लिश्ड कार्य आदि को नियुक्ति एवं प्रमोशन से अलग कर दे! इसकी अनिवार्यता की मजबूरी के कारण सभी शोध एवं ज्ञान के कबाड़ी बाजार का रास्ता ढूंढ़ते है! सिर्फ परीक्षा एवं कार्य के स्तर को ही नियुक्ति एवं प्रमोशन को ही ध्यान में रखना चाहिए! नौकरी अथवा डिग्री आदि देने के लिए एक साफ़, स्वछ एवं उच्च स्तर कि परीक्षा होनी चाहिए! इसी तरह प्रमोशन में कार्य एवं वरिष्ठता को ही देखना चाहिए! ज्यादा से ज्यादा एन.सी.सी., राष्ट्रीय स्तर क़ी खेलों में उपलब्धि, रचनात्मक कार्य जैसे कविता-कहानी लेखन, को नियुक्ति एवं प्रमोशन आदि में ध्यान देना चाहिए!

एन सभी सुधरों के लिए हमे समाज क़ी सोच बदलनी होगी! मानव संसाधन मंत्रालय के नेताजी इनाम बाबुओं को अपने एवं अपने वोट बैंक के स्वार्थ से बहार निकल कर सोचना होगा! उन्हें राष्ट्र निर्माण एवं चरित्र निर्माण को सोचते हुए शिक्षा में गुडात्मक परिवर्तन लाने होंगे. शिक्षा को पैसा बनाने वाला व्यापार अथवा वोट बैंक बनाकर वोट हथियाने का एक खतरनाक आत्मघाती हथियार के रूप में मानना बंद करना होगा. आहार ऐसा नाही होता है तो हमारा देश भी अफ्रीका अथवा अरब देशों क़ी तरह एक दंगाई-कबाइली राष्ट्र बन जायेगा.

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