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मै भी नंगा, तू भी नंगा, ये भी नंगा, वो भी नंगा,
नेता भी नंगा, वोटर भी नंगा, एम एल ए भी नंगा, एम पी भी नंगा,
राजा भी नंगा, रुंक भी नंगा, सेठ भी नंगा, फ़कीर भी नंगा,
बाबू भी नंगा, दफ्तर भी नंगा ।
अखबार भी नंगा, एडिटर भी नंगा, लेखक भी नंगा,
फूलों की खिलना भी नंगा, शब्दों का अहसास भी नंगा,
नूरजहाँ का गाना नंगा, हुसैन की पेंटिंग भी नंगी।
तबला भी नंगा, ढोल भी नंगा, गिटार भी नंगा, पियानो भी नंगा,
सुर भी नंगा, ताल भी नंगा, भाँगड़ा, लॉडी, धमाल भी नंगे,
दादरा, ठुमरी, भैरवी भी नंगे, कुफरी और खयाल भी नंगे,
फन भी नंगा और फंकार भी नंगा, गाने वाले नंगे, बजाने वाले नंगे।
प्यार भी नंगा, इश्क भी नंगा, चाहत का इज़हार भी नंगा,
जिंदा मुर्दा पीर भी नंगा, वाजिद शाह का हरम भी नंगा,
हँसना भी नंगा, रोना भी नंगा और नाच भी नंगा।
मेक्दोनल्द का पीज़ा भी नंगा, कैफसी का कबाब भी नंगा,
किंग फिशर की रम भी नंगी, हकीम का काड़ा भी नंगा,
बरगर, काफ़ी, कोक भी नंगे, उद्पी का खाना भी नंगा।
बच्चों का बसता भी नंगा, बेटी की गुड़िया भी नंगी,
गम भी नंगा, खुशियाँ भी नंगी और नाटक भी नंगा,
इक़बाल भी नंगा, कालीदस भी नंगा।
लोकतंत्र भी नंगा, सेकुलरिस्म भी नंगा,
समाजवाद भी नंगा, सामजिक न्याय भी नंगा,
मॉडर्न पोशाक भी नंगी, लिबरल तालीम भी नंगी।
यूनिवर्सिटी के अंदर भी नंगे, यूनिवर्सिटी के बाहर भी नंगे,
सेन का अर्थशास्त्र भी नंगा, मार्क्स का झोला भी नंगा।
मंदिर के अंदर भी नंगे, मस्जिद के भी अंदर नंगे,
हिंदू भी नंगा, मुस्ल्मा भी नंगा, सिख भी नंगा, ईसाई भी नंगा,
मै भी नंगा, तू भी नंगा, ये भी नंगा, वो भी नंगा।
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