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सड़क बंद हँ ……

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आज सड़क क्यों बंद हँ?
दरोगा जी!
मेरा पिता…..
दरोगा जी!
मेरी माँ को….
दरोगा जी!
मेरे बच्चे को बचा लो……..
दरोगा जी!
मेरे पत्नी….
प्रसव पीड़ा से तड़प रही हँ ,
बचा लो, मर जाएगी.
मेरा इम्तिहान!
साहब फेल हो जाऊँगा,
मेरा इंटरव्यू!
साहब भूखा मर जाऊँगा,
साहब! साहब!
पर सभी रोबोट बन गये हँ.
शायद एक क्लिक्क के दबने का इंतजार कर रहे हँ
बंद सड़क पर, सभी पथरा गये हँ .
क्या कोई खेलेगा अपनी अपनी सिली जुबा को.
और खोलेगा इस बंद सडक के तिलिस्म को,
हर शुक्रवार को होने वाली इस बंद सड़क के,
कब खुलेंगे राज,
कब खुलेगी ये बंद सडक,
जब दरोगाजी का अपना कोई बीमार आयेगा,
या फिर किसी नेता जी को जुकाम हो जायेगा,
शायद तभी खुलेगी हर शक्रवार को रहेने वाली ये बंद सड़क.
तभी चिथड़ो में एक पागाल भिखारी चीखा,
देखते नहीं सच्चे मुस्लमान आज पवित्र नमाज़ अदा कर रहे हँ,
और सभी इस बंद सड़क से जन्नत का रास्ता तलाश रहे हँ.

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